Thursday, May 5, 2022

शहर की, गाँव की गलियों से किनारा कर ले

शहर की, गाँव की गलियों से किनारा कर ले

अपने महलों के चरागों से अंधेरा हर ले

तेरे मन में जो बसा तम है ना मिटा पाएगा


तूने जोड़ा है जो सब तेरा ख़ज़ाना होगा

हार जाएगा जब छोड़ सब जाना होगा

कफ़न छोड़ ख़ाक भी न जुटा पाएगा


आँख पाई तो क्या, आँख दिखाई क्यूँ थी

आग क़ाबू में न आए तो लगाई क्यूँ थी

आग न प्यास न कुछ तू बुझा पाएगा 


हर तरफ़ घाव हैं, आँसू हैं, बेचारे भी बहुत

नाव है, द्वीप हैं, बहते हुए सहारे भी बहुत 

है नहीं तो वो जो इनको मिला पाएगा


आज के हाथ में है कल की धड़कन

तू न ग़म खा के मिटा अधूरा जीवन

तू जो 'गर ठान ले ख़ुद को बचा पाएगा


राहुल उपाध्याय । 24 अप्रैल 2022 । सिएटल 

https://youtu.be/sVx27EJ7FOA







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