कहते नहीं हम
सच तो यही है
दिल तुमको ही चाहे
माँ भी तुम्हीं हो
पिता भी तुम्हीं हो
तुमसे ही गुण पाए
रातों को जब जलते हैं दीपक
पाता हूँ लौ में तुमको
बर्फीले पथ, संगदिल राहें
सब में सम्बल है मुझको
तूने ऐसा ज्ञान दिया है
सब मुश्किल मिट जाए
डिग्री पा के, विदेश में जा के
नाम हमने कमाए
तुझसे दूरी बढ़ती गई
बढ़ती और ये जाए
तेरी मिट्टी की याद न जाए
भूल उसे न पाए
यादों से मैं क्यों कर लड़ता
यादें कितनी हैं प्यारी
हाथों में हैं सब कुछ मेरे
फिर भी न आए बारी
कि विदेश को हाथ हिला के
कह दूँ बाय-बाय
राहुल उपाध्याय । 11 अगस्त 2022 । अमनवाड़ी (महाराष्ट्र)
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