Wednesday, August 17, 2022

हमारी उमर यूँ जवाँ हो गई


हमारी उमर यूँ जवाँ हो गई 

बढ़ी जा रही थी हवा हो गई 

न चिंता कोई न फ़िक्र ही है कोई 

माथे की शिकन भी फ़ना हो गई 


नज़र का इशारा नज़र आ रहा है 

हमें हुस्न के नज़दीक ला रहा है 

किधर के किधर पाँव पड़ने लगे हैं 

किशोर किशोरी के मन भा रहा है 

हमें जिसका कोई गुमां भी न था

वही आज हमको अता हो गई 


कहें क्या कि ख़ुद को हवा ही नहीं है 

ये क्या हो रहा है पता ही नहीं है 

ये दिल ढूँढता था दिन रात जिसको

हमें तो लगा था कि बना ही नहीं है 

फिर आया दिन आज ऐसा 

के नूर से चूर फ़िज़ा हो गई 


अभी और जिएँगे, अभी और मरेंगे 

मर-मर के उनपे बहुत हम जिएँगे 

वो जानेंगे नहीं प्यार होता है क्या

जब तक न उनको बता ख़ुद न देंगे 

हमारे ज़हन में ये ग़ुस्ताख़ियाँ 

न जाने कहाँ से निहां हो गईं


राहुल उपाध्याय । 16 अगस्त 2022 । टोक्यो 

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