आई हैं तुमसे
हमारी ये ग़ज़लें
समाई हैं तुममें
हमारी ये ग़ज़लें
तुम्हें क्या पता
के नज़रों में क्या है
बयाँ कर रही हैं
हमारी ये ग़ज़लें
जहाँ तक है सीमा
वहाँ तक नदी है
उससे हैं आगे
हमारी ये ग़ज़लें
तुम्हें दिल दिया है
तो तुम्हें माँग लेंगे
कहती नहीं हैं
हमारी ये ग़ज़लें
कभी मन किया कि
चलो कुछ सुनाए
तो आएँगी लब पे
हमारी ये ग़ज़लें
राहुल उपाध्याय । 12 अगस्त 2022 । सलूम्बर (राजस्थान)
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