Friday, August 12, 2022

हमारी ये ग़ज़लें

आई हैं तुमसे

हमारी ये ग़ज़लें 

समाई हैं तुममें

हमारी ये ग़ज़लें 


तुम्हें क्या पता

के नज़रों में क्या है 

बयाँ कर रही हैं 

हमारी ये ग़ज़लें 


जहाँ तक है सीमा

वहाँ तक नदी है 

उससे हैं आगे

हमारी ये ग़ज़लें 


तुम्हें दिल दिया है 

तो तुम्हें माँग लेंगे 

कहती नहीं हैं

हमारी ये ग़ज़लें 


कभी मन किया कि

चलो कुछ सुनाए

तो आएँगी लब पे

हमारी ये ग़ज़लें 


राहुल उपाध्याय । 12 अगस्त 2022 । सलूम्बर (राजस्थान)








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