कभी पूरा, कभी अधूरा है चाँद
रातों को रोशन करता है चाँद
डरते-डराते मिलने आता है वो
मोहब्बत है तभी तो डरता है चाँद
मिलता है मुझसे, भले छ: हाथ दूर
सजता-सँवरता-निखरता है चाँद
पाता है जब भी, है लेता निकाल
मौक़े पे चौका धरता है चाँद
है दाग़ उस पर, पर दिखता नहीं
मुझी पर उजागर करता है चाँद
जो दिखता नहीं, दिखाते नहीं
दिखा कर मुझे ख़ुश रहता है चाँद
24 घंटे में होते ग़ायब हैं टेक्स्ट
महफ़ूज़ मुझको रखता है चाँद
है उम्र एक नम्बर, सच ही तो है
अंकों में कहाँ पड़ता है चाँद
पढ़ कर तिथि समझ आती है बात
वरना मैं ये नहीं, कहता है चाँद
दीवाने उसके हज़ारों हज़ार
है फक्र मुझको ये मेरा है चाँद
मिल जाए उसको जो चाहता है वो
ख़ुशी मेरी दुगनी जब हँसता है चाँद
हो जाए दो एक, मोहब्बत हो पूरी
चाहत ये मेरी समझता है चाँद
कितनी हैं बातें जो कही ही नहीं
रग-रग में मेरी यूँ रमता है चाँद
है शायर उसी का, शायरी उसी की
नग़मों से मेरे टपकता है चाँद
है मकते में राहुल, ये कैसा क़हर
क्यूँ बेनाम, गुमनाम रक्खा है चाँद
राहुल उपाध्याय । 17 अगस्त 2022 । सिएटल
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