न सेहरा बँधेगा
न चेहरा ढँकेगा
मोहब्बत जो की है
सर ना झुकेगा
न माँग भरूँगा
न हार ही दूँगा
मोहब्बत जो की है
सब ही है तेरा
न बिछियाँ ही होंगी
न सूत्र ही होगा
पता क्या ये देंगे
जब दिल ही है मेरा
न अग्नि जलेगी
न फेरे पड़ेंगे
मोहब्बत जो की है
कभी मुँह न फेरा
न पंडित ही होगा
न मंत्रों का गुंजन
मोहब्बत जो की है
ख़ुदा ही है मेरा
राहुल उपाध्याय । 11 अगस्त 2022 । भोपाल
http://mere--words.blogspot.com/2022/08/blog-post_11.html?m=1
0 comments:
Post a Comment