जब तलक प्राण है ये
जब तलक श्वास है ये
मुठ्ठी भर राख को
हो रहा उल्लास है ये
मेरे जीवन की डगर
चुनते ये पाँव नहीं
रहता हूँ मैं जहाँ
वो मेरा गाँव नहीं
मैं मुसाफ़िर हूँ यहाँ
मेरा आवास नहीं
चाहूँ तो नाप लूँ
नभ से पाताल को मैं
छोटे से हाथ से मैं
नाप लूँ विशाल को मैं
तन की सीमा है मगर
मन की कोई ख़ास नहीं
मन का तन का ये मिलन
है तो संसार है ये
तेरा मुझसे, मेरा तुझसे
पड़ा सरोकार है ये
आगे इसके भी है कुछ
इसका विश्वास नहीं
राहुल उपाध्याय । 12 अगस्त 2022 । सैलाना (मध्य प्रदेश)
1 comments:
राहुल जी
तन की सीमा और मन की असीम उड़ान पर
अद्भुत सृजन 🙏🏻🙏🏻
Post a Comment