Thursday, August 11, 2022

जब तलक प्राण है ये

जब तलक प्राण है ये

जब तलक श्वास है ये

मुठ्ठी भर राख को

हो रहा उल्लास है ये


मेरे जीवन की डगर

चुनते ये पाँव नहीं 

रहता हूँ मैं जहाँ

वो मेरा गाँव नहीं 

मैं मुसाफ़िर हूँ यहाँ 

मेरा आवास नहीं 


चाहूँ तो नाप लूँ 

नभ से पाताल को मैं 

छोटे से हाथ से मैं

नाप लूँ विशाल को मैं

तन की सीमा है मगर

मन की कोई ख़ास नहीं 


मन का तन का ये मिलन

है तो संसार है ये

तेरा मुझसे, मेरा तुझसे

पड़ा सरोकार है ये

आगे इसके भी है कुछ 

इसका विश्वास नहीं 


राहुल उपाध्याय । 12 अगस्त 2022 । सैलाना (मध्य प्रदेश)



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1 comments:

Surabhy Dutt said...

राहुल जी
तन की सीमा और मन की असीम उड़ान पर

अद्भुत सृजन 🙏🏻🙏🏻