Sunday, August 28, 2022

हमें दुख हुआ है कितना

हमें दुख हुआ है कितना 

ये हम नहीं जानते

मगर देख नहीं पाते

तुम्हारा विनाश 


सुना जग हँसाई का

सामाँ बन गए तुम 

घर-घर तमाशे का

सामाँ बन गए तुम

दुख भी यहाँ पे लगे

सुख से महान

ये दिल है उदास कितना

ये हम नहीं जानते 

मगर देख नहीं पाते

तुम्हारा विनाश 


गिरे पे हँसे लोग

तड़पता है दिल

बड़ी मुश्किलों से फिर

सम्हलता है दिल

क्या-क्या जतन करते हैं 

तुम्हें क्या पता

सुनें अट्टहास कितना

ये हम नहीं जानते 

मगर देख नहीं पाते

तुम्हारा विनाश 


राहुल उपाध्याय । 28 अगस्त 2022 । सिएटल 

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3 comments:

अनीता सैनी said...

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२९-०८ -२०२२ ) को 'जो तुम दर्द दोगे'(चर्चा अंक -४५३६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

Onkar said...

सुंदर प्रस्तुति

ज्योति-कलश said...

बहुत खूब