Monday, October 11, 2021

जो कहते थे कभी कि एक नूर हूँ मैं

जो कहते थे कभी कि एक नूर हूँ मैं

उनके दिल से आज कोसों दूर हूँ मैं


आए थे पास कि रोशनी मिलेगी

डर गए कि आग से भरपूर हूँ मैं


आग-ओ-रोशनी है हर चिराग़ में

महताब न बन सका, मजबूर हूँ मैं

(महताब = चाँद)


झुकाऊँ सर तो आए ग़ुलामी की बू

उठाऊँ सर तो लगे मगरूर हूँ मैं


सौहार्द और स्वाभिमान में तालमेल कैसा

ठहरा दिया गया कठोर और क्रूर हूँ मैं


राहुल उपाध्याय । 18 अगस्त 2016 । सिएटल

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