Saturday, October 16, 2021

ग़ज़ब आप ढाए, ग़ज़ब आप ढाए

ग़ज़ब आप ढाए, ग़ज़ब आप ढाए

ग़ज़ब आप ढाए, ग़ज़ब आप ढाए

बहारों के सपने हमको दिखाए 

बहारों से पर्दे आपने हटाए


मैं यूँ आया-गया, जैसे हूँ आग पे

आपने वक्त दिया, वक्त को थाम के

गले हम मिले हैं, अंगारों से जल के

ग़मों के आँगन में हम मुस्कुराए 


आपने बात की, मुझे अच्छा लगा

आपने बाँह दी, मुझे क्या-क्या लगा

नहीं छूना था जो वो भी छुआ है

चाँद पे जैसे हम उतर आए


आज आई घड़ी, विदा कैसे कहूँ 

आपकी साँस से जुदा कैसे रहूँ 

बहुत बार सोचा डेरा जमा लूँ

जहाँ हैं आप वहीं नज़र हम आए


राहुल उपाध्याय । 16 अक्टूबर 2021 । दिल्ली 



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