Friday, October 29, 2021

नीला आसमान

कल

मैं इतना दुखी रहूँगा 

कह नहीं सकता

लेकिन 

आज

अलसाते रास्तों से 

मुझे बहुत कोफ़्त है 

जो गुज़रते हैं 

किसी भीड़ से

मोहल्ले से

जहाँ लोग हैं

सुखी हैं या दुखी 

मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता 


हर ट्रेफ़िक लाईट पर 

झुँझलाहट होती है 

देखकर 

हँसते-रोते

बच्चे-बूढ़े-जवान


मन करता है 

सबको पैक कर दूँ 

मूविंग बाक्सेस में

और 

हाईवे पर ही दौड़ाऊँ अपनी कार 

और देखता रहूँ 

पहाड़, झरने, रंग बदलते पत्ते

नीला आसमान 


कभी

ज़मीन पर न उतरूँ 


(मम्मी के गुज़रने के 84 दिन बाद)

राहुल उपाध्याय । 29 अक्टूबर 2021 । सिएटल 





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