Sunday, October 17, 2021

तू नदिया की धारा

तू नदिया की धारा

मैं बादल एक आवारा

तू मुझको क्यूँ चाहे

मैं तुझको क्यूँ चाहूँ 


तेरा चुम्बन धूप ले प्यारा

तुझे बाँहों में कसे किनारा

मैं तुझको क्यूँ चाहूँ 

तू मुझको क्यूँ चाहे


तेरा पिया है सागर खारा

तुझे देना उसे है सारा

तू मुझको क्यूँ चाहे

मैं तुझको क्यूँ चाहूँ 


मैं हवा के तन से लिपटूँ 

हर घड़ी मैं रूख बदल लूँ 

तू मुझको क्यूँ चाहे

मैं तुझको क्यूँ चाहूँ 


सागर तड़पे मैं निकलूँ 

मैं तड़पूँ तुझे वो निगले

ये जनम-जनम के हैं फेरे

जैसे साँझ और सवेरे

हर रोज़ आ के जग में

मिल के भी नहीं हैं मिलते


ये सदियों से होता आया

दिल चैन से कहाँ रह पाया

जीवन जोत यूँ पनपे

पनपे जग जीवन सारा


तू नदिया की धारा

मैं बादल एक आवारा …


राहुल उपाध्याय । 17 अक्टूबर 2021 । सिएटल 











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