Sunday, October 10, 2021

समीकरण

चाहती है

माँगती है

खोजती है मुझे 


मैं हूँ उसका

और वो मेरी


दुबक के बैठी है

सही समय के इंतज़ार में 


——


समय 

समीकरण बदल देता है 

इधर का उधर 

और उधर का इधर कर देता है 


दो वेरिएबल हों

तो ग्राफ़ पेपर पर ही हल निकल आता है


सैकड़ों हों तो मुश्किल है

लोक-लाज, समाज, माता-पिता, भाई-बहन, नौकरी, घर

किस-किस को सम्हाले


——-


दुबक के बैठी है

सही समय के इंतज़ार में 


राहुल उपाध्याय । 11 अक्टूबर 2021 । रतलाम 

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