Wednesday, July 2, 2008

हाय और बाय

जब जब उससे मैं मिलता था
फूलों की तरह मैं खिलता था
मन से मन की बात होती थी
दिल को मेरे सूकूं मिलता था

फिर मेल-जोल सब छुट गया
मैं काम-काज में जुट गया

मैं हूँ यहाँ और वो है वहाँ
मिलते-जुलते हम कैसे कहाँ?

इंटरनेट मिली कमाल की चीज
इसने बोए फिर से प्रेम के बीज

मेसेंजर का जब मिला सहारा
बिछड़े हुए मिल गए दोबारा

मैसेंजर पर छाई अंग्रेज़ी मैया
और हम ठहरे हिंदी भाषी भैया
खूब नाच नचाया इसने
खूब नाचे हम ता-ता-थैया

मैं लिखूँ कुछ, वो कुछ और पढ़े
लफ़ड़े हुए फिर बड़े-बड़े

मैं हर्ष लिखूँ तो वो हार्श समझे
दम लिखूँ तो डैम
चित लिखूँ तो चिट समझे
हित लिखूँ तो हिट

वन लिखूँ तो वैन समझे
मन लिखूँ तो मैन
पंत लिखूँ तो पैंट समझे
बंद लिखूँ तो बैंड

लग लिखूँ तो लैग समझे
हम लिखूँ तो हैम
तुने लिखूँ तो ट्यून समझे
सुन लिखूँ तो सन

लब लिखूँ तो लैब समझे
मद लिखूँ तो मैड
हद लिखूँ तो हैड समझे
पद लिखूँ तो पैड

लोग लिखूँ तो लॉग समझे
जोग लिखूँ तो जॉग
पर लिखूँ तो पार समझे
पैर लिखूँ तो पेयर

खूब नाच नचाया इसने
खूब नाचे हम ता-ता-थैया
जैसे ही यूनिकोड हाथ में आया
छोड़-छाड़ कर हम भागे भैया

जान छुटी और लाखों पाए
रोमन छोड़ देवनागरी पे आए

दिनकर-निराला को याद किया
घंटो तक हमारी बात हुई
दिल से दिल तक बात पहुँची
शेरो-शायरी की बरसात हुई

अंग्रेज़ी के सारे जुमले छोड़ दिए
और हिंदी के मुहावरे जोड़ लिए

जब लिखना होता है - टॉक टू यू लेटर
मैं लिख देता हूँ - शेष फिर
जब लिखना होता है - बी राईट बैक
मैं लिख देता हूँ - एक मिनट

लेकिन पूरी बात यहाँ कौन लिखता है
जिसे देखो वो शार्ट-फ़ॉर्म लिखता हैं

जब लिखना होता है - टी-टी-वाय-एल
मैं लिख देता हूँ - शे-फि
जब लिखना होता है - बी-आर-बी
मैं लिख देता हूँ - ए-मि

पर एक समस्या विकट खड़ी है
जिस पर मुझे शर्म बड़ी है
मिलते वक़्त वो लिखे हाय
और जाते वक़्त वो लिखे बाय
क्या जवाब दू और क्या लिखूँ
सोच सोच न मिले उपाय

नमस्ते नमस्कार ठीक नहीं है
इनमें प्रेम-प्यार की छाप नहीं है
राम-राम का रिवाज नहीं है
और ख़ुदा-हाफ़िज़ का तो सवाल ही नहीं है

पत्र होता तो 'प्रिय', और 'तुम्हारा'
इन दोनों से चल जाता गुज़ारा

सोच सोच कर मैं हार गया
और अखिरकार मैंने मान लिया
कि हाय और बाय का विकल्प नहीं है
ये पूर्ण सत्य है कोई गल्प नहीं है

अगर आप जानते हैं तो सामने आए
टिप्पणी लिख कर मुझे बताए

सिएटल,
2 जुलाई 2008
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हाय = hi
बाय = bye
सूकूं = शांति
मेसेंजर = Instant Messenger
हार्श = harsh
डैम = dam
चिट = chit
हिट = hit
वैन = van
मैन = man
पैंट = pant
बैंड = band
लैग = lag
हैम =ham
ट्यून = tune
सन = sun
लैब = lab
मैड = mad
हैड = had
पैड = pad
लॉग = log
जॉग = jog
पार = par
पेयर = pair
टॉक टू यू लेटर = talk to you later
बी राईट बैक = be right back
टी-टी-वाय-एल = ttyl
बी-आर-बी = brb
विकल्प = alternative
गल्प = story
ई-मेल = email

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4 comments:

Sajeev said...

hi लिखने के स्थान पर सामने वाले को सीधे संबोधित कीजिये, जैसे जनाब, भाई, भाई साब, या फ़िर जान आदि और चलते समय लिखिए " चलिए " फ़िर मिलते है आदि, अब जब यहाँ तक पहुंचे हैं तो कुछ और आगे बढिए, नए शब्द खोजिए.... बधाई

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

आत्मीय है तो उसका पुकार-नाम लें। बीच में किसी फालतू शब्द का रोड़ा क्यों? वैसे ऐ‘जी’, भाई, बहन, माँ, भ्इया, दीदी, अम्मा, माई, चाची, ताई, मित्र, दोस्त, गुरू, गुरूजी, गुरुदेव, चाचाजी, मामाजी, मौसाजी, बुआजी, फूफाजी, पिताजी, बाबूजी, बेटा, बेटी आदि शब्द भी संबोधन के लिए ही बने हैं।
दरअसल, हम हिन्दुस्तानी अपनी उस संस्कृति को भूलना चाहते हैं जहाँ सभी रिश्ते अपनी विशिष्टता के साथ सुपरिभाषित हैं। यहाँ छोटे बड़े का आभास संबोधन से ही हो जाता है। फास्ट-फूड शैली की भाषा की खोज होने लगी है ताकि हम अगले के प्रति क्या भाव रखते हैं इसका उसे पता ही न चले। अंग्रेज इस कला में माहिर थे। इसलिए उन्होने अपनी ज़रूरत की भाषा बना ली। हम ठहरे भोले-भाले से - जैसे अन्दर वैसे बाहर। इसका अक़्स हमारी भाषा पर उभर आया।

Udan Tashtari said...

रोचक रचना और प्रश्न..काफी हद तक तो सजीव और सिद्धार्थ भाई बता ही गये जबाब.

Anonymous said...

जब खिल जाये चेहरा मिलकर,
वो सुख नहीं “हाइ” में लिखकर


भय वियोग से गीली आँखों,
का जो दिखता है अपनापन
“बाइ” आदि में कहाँ मिलेगा,
यों कुछ कहता है मेरा मन