Saturday, July 12, 2008

हम तुमसे जुदा हो के

हम तुमसे जुदा हो के
मस्त रहते हैं सो सो के

लड़कियाँ बड़ी फ़्रेंडली है
दिल खोल के हँसती है
हर रोज नई तितली
मेरे साथ फ़ुदकती है
लेती न कोई वादें
देती न कोई धोखें

बर्तन नहीं फूटते हैं
ताने नहीं सुनते हैं
जो मन करें हम वो
गाने सभी सुनते हैं
न कोई हमें रोके
न कोई हमें टोके

डरता था कभी ईश्वर
हम पर न फ़िदा होंगे
मालूम न था हम यूँ
इस तरह जुदा होंगे
किस्मत ने दिए मौके
रहे हम दो से एक हो के

सिएटल,
12 जुलाई 2008
(असद भोपाली से क्षमायाचना सहित)
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फ़्रेंडली = friendly

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3 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...
This comment has been removed by the author.
Anonymous said...

sahi hai. jari rhe.

Prabhakar Pandey said...

अच्छी रचना। लिखते रहें।