अब तुम वो हसीं नहीं हो
जो उतर गई थी दिल में
मसअलों के झंझट
छल-कपट के जमघट
घेर रहे हैं तुमको
कर रहे हैं तुमको
बद से और बदतर
अब तुम वो दिलनशी नहीं हो
जो गले लगी थी जम के
ये हादसों की रातें
ये मनमुटाव की बातें
कुम्हला रही हैं तुमको
झुलसा रही हैं तुमको
हद से और बढ़कर
अब तुम वो डॉल नहीं हो
जो हँस पड़ी थी झट से
राहुल उपाध्याय । 23 जून 2023 । रतलाम
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