मेरी दुनिया मेरे साँचे में उतर जाती है
जिधर जाऊँ, मेरी दुनिया उधर जाती है
रस्ता मेरा रचता हूँ मैं, ताकि काँटे न हो
रिश्ता कोई बनता नहीं, ताकि बाँधे न वो
मेरी उमर सुख से भरी गुज़र जाती है
अपने हैं जो, अपने नहीं हैं, खून के नाते हैं
छोड़ दिए, तोड़ दिए, अब ना वो नाते हैं
आँखों में मेरी नमी ना कोई नज़र आती है
राहुल उपाध्याय । 8 जून 2023 । सिएटल
0 comments:
Post a Comment