ये क्या 'सही', 'सही' लिखते-बोलते रहते हो?
क्या मैं तुम्हारी किसी पहेली का हल हूँ?
समझ क्या रखा है मुझे?
ये तुम्हारा 'ठीक'
दोबारा जो दिख गया ना
तो फ़ोन ही ब्लॉक कर दूँगी
ब्लॉक क्या, डीलिट ही कर दूँगी
ये तुम्हारी देवनागरी-शेवनागरी
अपने ही पास ही रखो
हमसे नहीं हो पाएगा
ये तो तुम्हारी क़िस्मत अच्छी है कि
हम चैट कर रहे हैं
वरना हमारे पास टाईम ही कहाँ है
पहले ही इतने काम पैंडिंग हैं
और ये बहुवचन-एकवचन हमें न सिखाओ
हम जैसे हैं वैसे ही रहेंगे
हम कोई बकरी हैं जो मैं-मैं करते फिरे
पहली रिंग पर ही फ़ोन उठा लिया करो
दूसरी से तीसरी रिंग हो गई तो
क़सम से हम फोन करना ही बंद कर देंगे
न जाने किस-किस से टाईम-बे-टाईम
बतियाते रहते हो
हमारी भी कोई इज़्ज़त है
हमसे नहीं बर्दाश्त होता
कोई हमारी कॉल डिक्लाइन करे
जो स्कूल में नहीं सीखा
वो इन माशूकाओं ने सिखा दिया
कि हर मौसम का अपना रंग है
हर रंग का अपना ढंग है
हर ढंग की अपनी मौज है
राहुल उपाध्याय । 11 जून 2023 । सिएटल
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