ये दिल नहीं दिमाग है
जो कि सोचता कुछ और है
कभी आस है इसे साथ की
कभी दौड़ता निज दौड़ है
भाग में सबके सब न होता है
कोई पाता है, कोई खोता है
ये खेल है किस काम का
जिसे खेलता कोई और है
जाल में फँस के इल्म होता है
ये जो जीवन है इक धोखा है
ये ज़ीस्त है किसी और की
और जी रहा कोई और है
प्यार की बातें सब पुरानी हैं
धीरे-धीरे सब मिट जाती हैं
ये सफ़र कटा है इस तरह
कि दुख हो रहा अब और है
(ज़ीस्त = ज़िन्दगी)
राहुल उपाध्याय । 25 जून 2023 । मूंगेढ़ (बाँसवाड़ा), राजस्थान
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