मैं 52 का जाऊँगा
और 53 का आऊँगा
दस दिन के सफ़र में
एक साल पूरा कर आऊँगा
क्या वजह है कि
इस उम्र में भी
इस तरह की पहेलियाँ
बूझना
मुझे अच्छा लगता है
शरीर बदला
मन बदला
समय
स्थान
सब कुछ बदला
फिर भी
कुछ तो है
जो
बालपन का ही रह गया
और यूँही
कभी-कभी हँस पड़ता है
तो कभी रो देता है
रात को सोते-सोते
घुटने पेट की ओर
मोड़ लेता है
वह कोई दीप ही होगा
जिसने कभी हार नहीं मानी
चाहे भयावह रात हो
समर हो
या झंझावात हो
बाती-तेल-मिट्टी
सब मयस्सर हो जाता है
बस आग होनी चाहिए
जीने की
जलने की
चाह होनी चाहिए
12 नवम्बर 2016
सिएटल | 425-445-0827
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