हर सुबह की शाम होती है
ज़िन्दगी यूँही तमाम होती है
ब्याहता का सुख राधा ने न देखा
और ब्याही सीता बदनाम होती है
चलो चलें, कहीं और चलें
पत्थर की लकीरें इधर आम होती हैं
पत्थर के सनम, पत्थर के खुदा
अब किससे यहाँ दुआ-सलाम होती है
'गर होता कोई कॉमा, तो रूकते भी हम
पढ़ते-पढ़ते तुम्हें, सुबह शाम होती है
28 नवम्बर 2016
सैलाना | 001-425-445-0827
tinyurl.com/rahulpoems
1 comments:
kaffi prerna yukt kavita hai
NEW YEAR WISHES 4 YOU
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