सपने -
जिन्हें मैं बनाता नहीं
देखना चाहता नहीं
देख लेता हूँ
रात के
घुप्प अंधेरे में
आँखें बंद किए
सोते-सोते
ईश्वर -
जिसे मैंने
बनाया
पूजा
सराहा
जिसकी जयजयकार की
उसे ही नहीं देख पाता हूँ
न अंधेरे में
न उजाले में
न दिन में
न रात में
न आँखें खोल कर
न बंद आँखों से
क्यूँकि
जो कल्पनातीत है
वह तो दिख सकता है
लेकिन वह नहीं दिखता
जो नज़रों के सामने है
किसी भी चीज़ को
साफ़-साफ़ देखने के लिए
उससे थोड़ा दूर जाना पड़ता है
ईश्वर से दूर कैसे जाऊँ?
यह तो सर्वत्र है, सर्वव्यापी है
मेरे भीतर है, मेरे बाहर है
आज तक कोई ऐसी सेल्फ़ि-स्टिक ईजाद नहीं हुई
जो सेल्फ़ का सेल्फ़ि ले सके
और कोई कैमरा नहीं जिसकी पैनोरामा सेटिंग
सम्पूर्ण को क़ैद कर सके
21 नवम्बर 2016
सैलाना | 001-425-445-0827
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