मेरी खिड़की के बाहर
सोना इतना है
कि
लॉकर में रखा
लगता है तुच्छ
जब
झड़ जाएगा
गिर जाएगा
आफ़त मेरी बन जाएगा
कमरतोड़ मेहनत करवा के मुझसे
कचरे में जा के सड़ जाएगा
फिर आएगा
फिर मोहेगा
फिर झूमेगा
वक़्त का पहिया
फिर घूमेगा
सुखद क्षणों का
अहसास है जीवन
दुखद पलों का
अवसान है जीवन
सब होता है
सुनियोजित यहाँ
बस फ़र्क़ यही है कि
कब तुम आए
कब, क्या तुमने देखा
सुख में दु:ख है
दु:ख में सुख है
दृष्टा को है दृष्ट अगोचर
सृष्टा करता सम्वाद नहीं है
सब कुछ है सामने
कुछ भी छुपा नहीं है
न ताला, न चाबी
न गुफ़ा कहीं है
भाषा का भी विवाद नहीं है
जो तुम बोलो
मैं वो बोलूँ
वही भाषा
नभ-पाताल बोलें
ब्रह्माण्ड के इक-इक कण में
सर्व चराचर, जड़-अजड़ में
वही कम्पन है
वही सुधा है
सुखद क्षणों का
अहसास है जीवन
दुखद पलों का
अवसान है जीवन
सब होता है
सुनियोजित यहाँ
बस फ़र्क़ यही है कि
कब तुम आए
कब, क्या तुमने देखा
9 नवम्बर 2016
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