बाल-दिवस है
गुरू-पूरब है
और सबका ध्यान
बैंक की तरफ़ है
न नेहरू
न गुरू
निन्यान्वे का फेर
फिर से शुरू
भला हो मोदी जी का
जो काले को गोरा करने में लगे हैं
अब कौन उन्हें समझाए कि
सफ़ेद रंग
लाख कोशिश कर लो
काला पड़ ही जाता है
चाहे कार हो या रूमाल
यह स्वाभाविक है
प्राकृतिक है
और वैसे भी
गोरेपन से मोह अच्छा नहीं होता
ग़ुलामी की बू आती है
अगर
हमें घर से बाहर निकाल कर
हमारी लम्बे समय तक क़तार में
खड़े रहने की क्षमता को आँकना ही मक़सद था
तो पहले ही कह दिया होता
हम योग दिवस पर कन्नी नहीं काटते
हर आसन को
शाष्टांग प्रणाम करते
अब परिवार को
न मूवी दिखा सकते हैं
न आईसक्रीम खिला सकते हैं
न कामवाली को तनख़्वाह दे सकते हैं
न दूधवाले का हिसाब कर सकते हैं
आप तो रहे बड़े ओहदों पर
आपका इन सबसे क्या सरोकार
बच्चों की फ़ीस
ट्यूशन के पैसे
आपने कब जोड़े?
न जूते ख़रीद सकते हैं
न शर्ट
न टैक्सी ले सकते हैं
न मिठाई
यह किस बात की सज़ा है भाई?
कि कुछ लोग ख़राब हैं
तो हुए हम भी बदनाम हैं?
चलो कोई बात नहीं
कभी-न-कभी तो होंगे चुनाव भी
14 नवम्बर 2016
सिएटल | 425-445-0827
tinyurl.com/rahulpoems
1 comments:
कभी-न-कभी तो होंगे चुनाव भी - Very negative Take on a game changer initiative
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