बस चलना ही सफ़र नहीं होता
शस्त्र भाँजना ही समर नहीं होता
कूद पड़ो रक़्स-ए-इश्क़ में
कर गुज़रने का कोई पहर नहीं होता
न डूबती है, न उबरती है
बस तैरती है मछली
सिर्फ़ हाथ-पाँव मारने ही से
कोई अमर नहीं होता
सफ़र की क़ीमत थकन से न आँको
न छालों का, काँटों का
न पसीने की बूँदों का
किसी भी बैंक में लॉकर नहीं होता
क्यूँ करते हो रश्क देखकर
इमारतें बुलन्द किसी की
यूँही नहीं होती हासिल मंज़िले
हौसला दिल में 'गर नहीं होता
बहाने वाले बहाने करेंगे
कि होते हम भी कामयाब
'गर होती कश्ती पुख़्त
या समंदर बवंडर नहीं होता
29 नवम्बर 2016
सैलाना | 001-425-445-0827
tinyurl.com/rahulpoems
1 comments:
बहुत सुंदर!!!
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