मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि
मेरा घर इतना छोटा है कि
इसके चारों कोनों में
बादल एक सा पानी बरसाता है
और सूरज धूप
हवा भी एक सी चलती है
और सारी घड़ियों में
समय भी एक सा रहता है
वरना
मैं अपने परिवार को
बिना भेदभाव के
एक सा कैसे रख सकता
कहीं गर्मी होती, तो कहीं सर्दी
कहीं सूखा होता, तो कहीं दलदल
मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि
मेरा परिवार छोटा है
वरना
बात-बात पर दंगे-फ़साद होते
कभी भाषा पर
तो कभी धर्म पर
मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि
मेरी तनख़्वाह इतनी नहीं कि
सम्हाल न सकूँ
और शक्तिशाली इतना नहीं कि
बॉडीगार्ड रखूँ
मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि
मैं समाज का एक अदना सा पुर्ज़ा हूँ
न फ़रिश्ता हूँ, न हैवान हूँ
महज़ एक इन्सान हूँ
रोज़ जूझता हूँ
काम, क्रोध, मद, लोभ से
झूठ नहीं कहूँगा
कि
क्रोध नहीं करता
या लोभ नहीं होता
लेकिन
मेरे क्रोध से
न तो समंदर सूखा
और न ही मेरे लोभ से
सोने की लंका बनी
मैं शुक्रगुज़ार हूँ कि
मेरा घर इतना छोटा है कि ...
गुरूपूरब 2016
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