जो पत्नी पे लिखता था
उसपे फ़िट हो रही है
प्रेमिका की चमक
अब खो रही है
जो जानता ये होगा
मैं छोड़ता न उसको
गीत प्रेम के छोड़
ग़ज़ल रो रही है
शहर भर सारा
मुझे जोड़ता है उससे
कैसे कहूँ उनसे
के क़िस्मत सो रही है
प्रेम-प्यार की बातें
होती हैं कुछ ऐसी
दो दिन बहलाए
दो दिन धो रही है
मैं न रहा वैसा
कि वो प्यार करे मुझसे
बदल गया हूँ मैं
बदल वो रही है
राहुल उपाध्याय । 25 जनवरी 2024 । सिएटल
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