कोई है जो ढूँढता है
ढूँढता है मुझको चाँद में
चाँद पे न पा के मुझको
खोजता है फ़ोन में
आस-पास न हूँ मैं उसके
यही तो ख़ास बात है
चौबीसों घंटे उसको उपलब्ध
क्या दिन और क्या रात है
आज के हम लैला-मजनू
मल्टीमीडिया साथ है
फ़ेसबुक और व्हाट्सएप पर
चल रही हमारी बात है
पाँच मिनट का है मिलन
ख़ास तो जज़्बात हैं
घंटों-घंटों बात करते
सैर करते हम साथ हैं
वो मुझे इतना है चाहती
कि डीपी पर तस्वीर मेरी और
स्टेटस पर कविता को डाल कर
कर रही मुझको याद है
वो है मेरी, मैं हूँ उसका
ऐसा कोई वहम नहीं
वो भी आज़ाद, मैं भी आज़ाद
हर कोई आज़ाद है
राहुल उपाध्याय । 9 जनवरी 2024 । अम्स्टर्डम
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