मर ही जाता जो तुमपे न मरता
इतना ही है बस तुमसे कहना
वेलेण्टाइन डे कोई उत्सव नहीं है
कैसे बताऊँ कैसे हैं कटता
बहारों की मंज़िल होती नहीं है
इनका है काम आते-जाते रहना
दिन पर दिन वही रूटीन है मेरा
नया-ताज़ा अब कहाँ है दिखता
सोचोगी कभी तो विश्वास करोगी
मैं उतना बुरा नहीं जितना हूँ लगता
राहुल उपाध्याय । 28 जनवरी 2024 । सिएटल
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