Tuesday, January 30, 2024

हाथ धोते वक्त बाँहें चढ़ाना

हाथ धोते वक्त बाँहें चढ़ाना 

सबको पता है, किसको बताना


सबने सीखा है अपने ही दुख से

सुख ने कभी कुछ किया भला ना


सोच-समझ के बस मंज़िल मिली है

जो बिन सोचे पाई वही बनी फ़साना 


कब कहाँ मैंने किस को बताया 

सब को पता है मेरी जान-ए-जानां


ये दिल मेरा कोई समंदर हो जैसे

जो भी आया उसे अपना ही माना


राहुल उपाध्याय । 30 जनवरी 2024 । सिएटल 







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