Friday, January 5, 2024

बढ़ रही है उम्र मेरी

बढ़ रही है उम्र मेरी 

घट रही है ज़िन्दगी 

कैसे-कैसे दिन ये आए

सिमट रही है ज़िन्दगी 


आँख में आँसू भी न आए

छूटने वाले छूट रहे

आ गई इतनी समझ कि 

निपट रही है ज़िन्दगी 


डूब के मरना नहीं है 

अपने हाथ कुछ नहीं है 

जब तक वो ख़ुद न आए

कट रही है ज़िन्दगी 


चल दिया मैं कल जहां से

जाऊँगा न फिर लौट के

क़समें-वादे सब हैं झूठे

उचट रही है ज़िन्दगी 


चल दिया जो कल जहां से

आऊँगा न फिर लौट के

लाख जोड़ो रिश्ते मुझसे

रपट रही है ज़िन्दगी 


राहुल उपाध्याय । 5 जनवरी 2023 । अम्स्टर्डम



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