बढ़ रही है उम्र मेरी
घट रही है ज़िन्दगी
कैसे-कैसे दिन ये आए
सिमट रही है ज़िन्दगी
आँख में आँसू भी न आए
छूटने वाले छूट रहे
आ गई इतनी समझ कि
निपट रही है ज़िन्दगी
डूब के मरना नहीं है
अपने हाथ कुछ नहीं है
जब तक वो ख़ुद न आए
कट रही है ज़िन्दगी
चल दिया मैं कल जहां से
जाऊँगा न फिर लौट के
क़समें-वादे सब हैं झूठे
उचट रही है ज़िन्दगी
चल दिया जो कल जहां से
आऊँगा न फिर लौट के
लाख जोड़ो रिश्ते मुझसे
रपट रही है ज़िन्दगी
राहुल उपाध्याय । 5 जनवरी 2023 । अम्स्टर्डम
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