Tuesday, January 30, 2024

वह कार से जाती

वह कार से जाती 

सुख-सुविधाएँ पाती

ठंड से बचती 

गाने सुन पाती 

ड्राइवर भी होता 

अंगरक्षक सा होता

जैसी जाती 

वैसी आती 

धूल-मिट्टी 

कुछ न पाती


ये सब तो होता 

लेकिन उधार का होता

जी-हजूरी में कहाँ 

सुख मिलता 

स्कूटी उठाके वो 

फ़ौरन निकल गई 

गूँगे को जैसे 

आवाज़ मिल गई 

सुनना छोड़ 

वो गा रही थी 

जानी-अनजानी गलियों से 

जा रही थी

कोई रोकता उसे

तो पता ये चलता

हेलमेट के नीचे

कोई लड़की नहीं है 

नये भविष्य की

एक कोपल खिली है


राहुल उपाध्याय । 30 जनवरी 2024 । सिएटल 


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