वह कार से जाती
सुख-सुविधाएँ पाती
ठंड से बचती
गाने सुन पाती
ड्राइवर भी होता
अंगरक्षक सा होता
जैसी जाती
वैसी आती
धूल-मिट्टी
कुछ न पाती
ये सब तो होता
लेकिन उधार का होता
जी-हजूरी में कहाँ
सुख मिलता
स्कूटी उठाके वो
फ़ौरन निकल गई
गूँगे को जैसे
आवाज़ मिल गई
सुनना छोड़
वो गा रही थी
जानी-अनजानी गलियों से
जा रही थी
कोई रोकता उसे
तो पता ये चलता
हेलमेट के नीचे
कोई लड़की नहीं है
नये भविष्य की
एक कोपल खिली है
राहुल उपाध्याय । 30 जनवरी 2024 । सिएटल
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