तुम बहुत अच्छी हो
यह मुझे तब ही पता चल गया था
जब तुमने मुझे गले लगाया था
अपनापन जताया था
डूबते को तिनका थमाया था
तुम्हारी हर फ़ोन कॉल
मुलाक़ात
चैट
मुझे भाव-विभोर कर देती हैं
तुम्हारे दिल के अच्छेपन से
तुम्हारा दिल
कितना साफ़ है
सच्चा है
अच्छा है
इसका कोई मापदंड नहीं है
तुम दिमाग से कितनी कुशाग्र हो
यह तो पता चल जाता है
तुम्हारी शिक्षा से
डिग्री से
सर्टिफिकेट से
नौकरी से
घर से
कार से
तुम्हारा दिल कितना अच्छा है
इसका कोई हिसाब नहीं है
जोड़ने की कोशिश ज़रूर करता हूँ
कि उसने यह क्यूँ किया?
ऐसा करने की कोई ज़रूरत नहीं थी
फिर भी क्यों करती है
करती ही रहती है
और हर पल यह अंदेशा भी लगा रहता है
कि कहीं अगले ही पल तुम्हें खो न बैठूँ
तुम्हारी कोई गारंटी भी नहीं है
कोई अनुबंध नहीं
कोई करारनामा नहीं
सहज रहने की कोशिश करता हूँ
सहज रह नहीं पाता
तुम पर बहुत प्यार आता है
और डर भी लगता है
राहुल उपाध्याय । 2 सितम्बर 2024 । गोरखपुर
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