मैं रोज़
घुसा देता हूँ
ख़ुद को
एक पेंसिल स्केच में
इस कोशिश में कि
शायद किसी भीड़ का हिस्सा बन जाऊँ
कोई रंग मुझ पर चढ़ जाए
जीने का उद्देश्य मिल जाए
और
लौट आता हूँ
कोरा
अनछुआ
बेदाग़
राहुल उपाध्याय । 28 सितम्बर 2024 । होनोलुलु
मैं रोज़
घुसा देता हूँ
ख़ुद को
एक पेंसिल स्केच में
इस कोशिश में कि
शायद किसी भीड़ का हिस्सा बन जाऊँ
कोई रंग मुझ पर चढ़ जाए
जीने का उद्देश्य मिल जाए
और
लौट आता हूँ
कोरा
अनछुआ
बेदाग़
राहुल उपाध्याय । 28 सितम्बर 2024 । होनोलुलु
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