मैं ढूँढता रहा तुम्हें
उन-उन गलियों में
जहां से होकर तुम गुज़री थी
ढूँढता रहा
तुम्हारा अक्स
तुम्हारी ख़ुशबू
तुम्हारी पहचान
तुम्हारा चिन्ह
तुम्हारे मोती जैसे दांतों की चमक
गिंज़ा डिस्ट्रिक्ट की चमचमाती दुकानों में
पीता रहा गर्म पानी
खाता रहा एडामामे
शायद तुमने भी यही
खाया-पिया होगा
टीम लैब के फ़र्श पर
बड़ी देर तक नंगे पाँव रहा
कि कहीं ये गर्माहट जो है
तुम्हारे तलवों की तो नहीं?
क्या यह वही पानी है
जिसमें भीगने से तुमने
प्लाज़ो बचाई होगी?
क्या इसी लॉकर में तुमने
अपना बैग और जूते रखे थे?
क्या इन्हीं फूलों के नीचे
तुम बैठी थी?
शहर तो
अच्छा है ही
तुम्हें ढूँढना
इसे और मनमोहक बना गया
हर कोने में मेरी आँख गड़ी रही
पाँचों इन्द्रियॉ
ओवरटाइम काम करती रहीं
राहुल उपाध्याय । 23 सितम्बर 2024 । टोक्यो
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