वह छुप-छुप के शायरी लिखती है
मुझे भेज के डीलिट कर देती है
छद्म नाम से फ़ेसबुक पे पोस्ट करती है
डरती है कहीं पति यह जान न ले
कि उसका दिल अब भी धड़कता है
किसी की याद उसमें बसती है
किसी को पाने को दिल मचलता है
सब कुछ खोने को दिल करता है
आधी रात को जब आँख खुलती है
सुख-दुख की लहरों में डूब जाती है
क्या नहीं है उसके पास जो वो दुखी है
अंगरक्षक सा एक पति है
चारदीवारी में बंद सुरक्षित है
बेटी भी उसकी, उसकी मूर्ति है
पति ने जो सेज ख़ाली की
उसकी बेटी आज उसपे सोती है
राहुल उपाध्याय । 12 सितम्बर 2024 । खाचरोद (मध्यप्रदेश)
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