समंदर के अंदर एक तूफ़ान है
नटी के तट पर एक उफान है
हसरतें-चाहतें
किसी एक की जागीर नहीं
जितनी इधर हैं
उतनी उधर भी तो हैं
जीवन के पथ पर
ये कैसा मोड़ है
दिन हैं सुहाने
और मन मोर है
मैं पाऊँ और न गाऊँ
ये कैसी प्रीत है
बढ़-चढ़ कर बताऊँ
ये मेरी रीत है
राहुल उपाध्याय । 24 सितम्बर 2024 । टोक्यो
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