हवाएँ
रोज़ आती हैं
रोज़ जाती हैं
न कुछ लाती हैं
न ले जाती हैं
क्षण भर को
अपना अहसास करा कर
चली जाती हैं
हवा न हो तो जीना मुश्किल
ठहर जाए तो बेचैन कर देती है
मैं हवा हूँ
राहुल उपाध्याय । 14 सितम्बर 2024 । रतलाम से उज्जैन जाते हुए
हवाएँ
रोज़ आती हैं
रोज़ जाती हैं
न कुछ लाती हैं
न ले जाती हैं
क्षण भर को
अपना अहसास करा कर
चली जाती हैं
हवा न हो तो जीना मुश्किल
ठहर जाए तो बेचैन कर देती है
मैं हवा हूँ
राहुल उपाध्याय । 14 सितम्बर 2024 । रतलाम से उज्जैन जाते हुए
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