न जेल, न क़ैद, न पिंजरा है
आदमी खुद ही शिकंजा है
तुम्हें क्या कोई बांधेगा
तुम्हें क्या कोई छोड़ेगा
तुम ही तुम्हारे दुश्मन हो
तुम्हारा दिल तुमको तोड़ेगा
ये दुनिया, ये नाते फ़ानी हैं
जीवन बहता पानी है
जिसे मुठ्ठी में तुम लाओगे
फिसल के वही रेत जानी है
नहीं कुछ यहाँ जो तुम्हारा है
जो आता है एक दिन जाता है
हवाओं सा होके यहाँ घूम लो
उसके आगे निशाँ न गाथा है
राहुल उपाध्याय । 14 सितम्बर 2024 । रतलाम से उज्जैन जाते हुए
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