यहाँ-वहाँ और देश-विदेश
आज का दिन है बड़ा विशेष
ख़ास दिन पर होती है ख़ास चाह
हज़ारों ने किए आज शुभ विवाह
न जाने इस में कौन सी है ऐसी ख़ास बात
क्या आज दिन न ढलेगा, न होगी रात?
क्या आज लोग न लड़ेंगे, न होगा प्यार?
क्या आज कोई न जन्मेगा, न होगा पार?
वही बाग़ हैं, वही बगीचे
वही घर हैं, वही दरीचे
कल, आज और कल में कोई फ़र्क नहीं है
जो अलग साबित कर दे ऐसा तर्क नहीं है
हर कैलेंडर की अपनी तिथि है
दिन गिनने की अलग विधि है
इस कैलेंडर में निकला कुछ आज ख़ास
तो उस कैलेंडर में निकलेगा कुछ कल ख़ास
कोई हिंदू कैलेंडर है
कोई मुस्लिम कैलेंडर है
तरह तरह के
यहाँ कैलेंडर हैं
दिन अलग हैं
साल अलग हैं
हर महीने के
नाम अलग है
हज़ार झगड़े होते हैं
जात-पात के
हज़ार लफ़ड़े होते हैं
बोल-चाल के
हज़ार पचड़े होते हैं
धर्म-समाज के
हज़ार रगड़े होते हैं
देश-प्रांत के
लेकिन ये देख कर
होता विस्मय है
कि मानता हर कोई
एक समय है
हिंदू, मुस्लिम या
कोई धर्म हो
हिंदी, अंग्रेज़ी या
कोई ज़ुबाँ हो
पूरब, पश्चिम या
कोई दिशा हो
छोटा, बड़ा या
कोई यहाँ हो
हर घड़ी में
एक समय है
सिएटल,
8 अगस्त 2008
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दरीचे = खिड़कियाँ
ज़ुबाँ = भाषा
Friday, August 8, 2008
आठ-आठ-आठ
Posted by Rahul Upadhyaya at 5:59 PM
आपका क्या कहना है??
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3 comments:
आज भौजी लौट रही हैं क्या??
sahi samay par sahi rachna.bahut badhiya
सुंदर शब्द चित्रण किया आपने.
समीर भाई की बात का जवाब दिया जाय.
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