कभी जलती थी शमा रोशनी के लिए
आज जलती है फ़क़त ख़ुशबू के लिए
कभी मिलते थे दोस्त दोस्ती के लिए
आज मिलते हैं फ़क़त गुफ़्तगू के लिए
डिग्री हो
सुशील हो
और धन भी कमाए
वही बस आज एक आदर्श पत्नी कहलाए
चाहे रात भर छटपटाती रहे एक मजनू के लिए
किस्से कहानी कुछ
यूँ शुरू होते हैं
कि हर सिक्के के दो
पहलू होते हैं
जीते हैं हम जो मिल न सके उस पहलू के लिए
ये तेरा
ये मेरा
यही रोना है
टुकड़ों में
बंट गया
घर का कोना कोना है
कोई एक जगह न बची सुकूँ से रू-ब-रु के लिए
न शादी है पक्की
न देश से है भक्ति
दे देते हैं तलाक़
चाहे देश हो या व्यक्ति
नहीं खपता है कोई आज इज़्ज़त आबरू के लिए
सिएटल,
9 अगस्त 2008
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शमा = मोमबत्ती
फ़क़त = सिर्फ़
गुफ़्तगू = बातचीत
सिक्के के दो पहलू = two sides of a coin
रू-ब-रू = आमने-सामने बैठ कर बात करना
Saturday, August 9, 2008
कभी जलती थी शमा रोशनी के लिए
Posted by Rahul Upadhyaya at 6:29 PM
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3 comments:
aaj milte hain faqat guftgun ke liye,...badhiya sir jee,badhai
kya baat hai !!
Bahut khoob !!
डिग्री हो
सुशील हो
और धन भी कमाए
वही बस आज एक आदर्श पत्नी कहलाए
बहुत बहुत बहुत अच्छी रचना!
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