Thursday, August 28, 2008

प्रियतम

कहते कहते प्रियतम
तुम्हें लगने लगा है प्रिय तम
अब अंधेरा ही तुम्हे रास आता है
और वहीं रहती हो तुम हरदम

गाते गाते सरगम
चढ़ने लगा है तुम्हारे सर ग़म
अब उदास और निराश ही
रहती हो तुम हरदम

अरे, ऐसी भी क्या है बेबसी?
तुम तो सुंदर थी एक बेब सी
इस प्यार-वफ़ा के चक्कर में
क्यूँ सिकुड़ गई सड़े सेब सी?

इस से तो अच्छे हैं वो मंकी
जो कर लेते हैं अपने मन की
न करते हैं कोई गिला-शिकवा
न रखते हैं शर्त किसी बंधन की

सिएटल,
28 अगस्त 2008
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तम = अंधेरा
बेब = babe
सेब = सेव
मंकी = monkey

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6 comments:

Udan Tashtari said...

:) बहुत सही!!

Satyajeetprakash said...

बहुत ही बढ़िया.

अनूप शुक्ल said...

अच्छी उधेड़ बुनी है।

Anil Pusadkar said...

kya bat hai,sahi hai

PREETI BARTHWAL said...

बहुत खूब

Yogi said...

ha ha ha...

sikud gayee ho seb si...

nice one...