करता हूँ प्यार तो क्यों कहते हो बेवफ़ा मुझको
क्या हुआ जो हो गया प्यार कई मर्तबा मुझको
अगर मानते हो
इसे मेरी ख़ता
अपनी दुनिया से
मुझे कर दो दफ़ा
लेकिन याद तो करोगे गुले-गुलज़ार कई दफ़ा मुझको
आज नहीं
तो हम कल मिलेंगे
अकेले न सही
किसी महफ़िल में मिलेंगे
हँसता ही मिलूंगा न पाओगे तुम कभी ख़फ़ा मुझको
सब है मिथ्या
सब है नश्वर
एक प्यार ही है
जो है अमर
समझ आया यही एक ज़िंदगी का फ़लसफ़ा मुझको
न छुड़ाता दामन
न तजता मैं साहिल
पहले पड़ाव को ही
मान लेता मंज़िल
'गर मंज़ूर न होता लहरों से यूँ लिपटना मुझको
कहता हूँ सच
कहता हूँ खरी
न तुम हो पहली
और न आखरी
कभी रास आया नहीं बांधना या बंधना मुझको
लुटाता हूँ प्यार
लुटाता रहूँगा
बनाता हूँ यार
बनाता रहूँगा
'गर समझ सको तो फ़क़त दोस्त समझना मुझको
विश्व मित्र हूँ
कोई विश्वामित्र नहीं
जीता जागता इंसान हूँ
कोई मृत चित्र नहीं
लुभाना चाहे तो बेशक़ लुभा ले कोई अप्सरा मुझको
न दो कड़वी
न दो रसीली
ना ही दो
किसी बाबा की गोली
प्रेम कोई रोग नही है जो दे रहे हो दवा मुझको
सिएटल,
5 अगस्त 2008
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केसानोवा = Casanova
मर्तबा =(number of) times
ख़ता = mistake
दफ़ा = 1. remove 2. times
ख़फ़ा = angry, displeased
फ़लसफ़ा =philosophy
मिथ्या =illusion
नश्वर = destructible, transient
तजता = leave
साहिल = shore
पड़ाव =halting place
मंज़िल = destination
'गर = अगर, if
खरी = truth
रास = like
फ़क़त = only
विश्वामित्र = an ancient sage who was seduced by Menaka
मृत =dead
Tuesday, August 5, 2008
केसानोवा (Casanova)
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:15 AM
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Labels: relationship, valentine
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4 comments:
वाह भाई साहब।
achchi rachna ....
Bahut achhi kavita likhi hai aapne !!
Khoob enjoy kiya maine aapki poem ko padhna..
Keep writing !!
Do visit
http://tanhaaiyan.blogspot.com
करता हूँ प्यार तो क्यों कहते हो बेवफ़ा मुझको
क्या हुआ जो हो गया प्यार कई मर्तबा मुझको
I donno about others but this one i loike the most keep writing on this kinda stuff...
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