इस कड़वे संसार में
हम पवित्र प्रेम रस पी रहे हैं
तिस पर इलज़ाम ये कि
हम दोहरी ज़िंदगी जी रहे हैं
कहाँ तो लोग
ठीक से एक ज़िंदगी
नहीं जी पाते हैं
एक दूसरे के साथ
शांति से चाय तक
नहीं पी पाते हैं
क्या हर्ज़ है
जो हम
एक नहीं
दो दो ज़िंदगी
बखूबी जी रहे हैं
हम घंटो-घंटो
एक दूसरे की
बातें सुनते हैं
एक दूसरे का
दु:ख-दर्द समझते हैं
हँसते हैं
हँसाते हैं
एक दूसरे का
मान रखते हैं
एक दूसरे का
मन रखते हैं
फिर भी दुनिया वाले
इसे गलत कहते हैं
आखिर ऐसा भी क्या
गुनाह करते हैं?
बस ईश्वर की भेंट को
सहर्ष स्वीकार करते हैं
एक दूसरे से
बहुत बहुत प्यार करते हैं
कहने वाले
कहते रहे हैं
करने वाले
करते रहे हैं
एक लाल
एक पीली
या
दोहरी
जैसी भी है ये ज़िंदगी
इसे जीने का हक़
सिर्फ़
हमें हैं
हमें हैं
सिर्फ़ हमें!
सिएटल,
9 अगस्त 2008
Saturday, August 9, 2008
दोहरी ज़िंदगी
Posted by Rahul Upadhyaya at 4:40 PM
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Labels: intense, relationship, valentine
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