अपने एच-वन की उलझन को कैसे मैं सुलझाऊँ
औरों को जो ग्रीनकार्ड मिले हैं कैसे मैं पा जाऊँ
बॉस के वादे हो गए झूठे
सारे सपनें टूटे
घिसघिस के वो काम कराए
चैन मेरा वो लूटे
ऐसे लीचड़-पाजी से मैं कैसे साथ निभाऊँ
मेरा पासपोर्ट वो छुपाए
बाँड मुझसे वो भरवाए
कोई ना जाने इस विलैन को
ये किस तरह सताए
कर ना पाऊँ वकील कोई पल-पल मैं घबराऊँ
आया जब से ऐसा फ़ंसा हूँ
मुझसे सहा ना जाए
लिखना चाहूँ ब्लाग पे अपने
फिर भी लिखा ना जाए
जौंक की तरह मुझसे चिपका कैसे पीछा छुड़ाऊँ
सिएटल,
27 अगस्त 2008
(एम-जी हशमत से क्षमायाचना सहित)
=================================
एच-वन = H1
बॉस = Boss
बाँड = bond
ब्लाग = blog
औरों को जो ग्रीनकार्ड मिले हैं कैसे मैं पा जाऊँ
बॉस के वादे हो गए झूठे
सारे सपनें टूटे
घिसघिस के वो काम कराए
चैन मेरा वो लूटे
ऐसे लीचड़-पाजी से मैं कैसे साथ निभाऊँ
मेरा पासपोर्ट वो छुपाए
बाँड मुझसे वो भरवाए
कोई ना जाने इस विलैन को
ये किस तरह सताए
कर ना पाऊँ वकील कोई पल-पल मैं घबराऊँ
आया जब से ऐसा फ़ंसा हूँ
मुझसे सहा ना जाए
लिखना चाहूँ ब्लाग पे अपने
फिर भी लिखा ना जाए
जौंक की तरह मुझसे चिपका कैसे पीछा छुड़ाऊँ
सिएटल,
27 अगस्त 2008
(एम-जी हशमत से क्षमायाचना सहित)
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एच-वन = H1
बॉस = Boss
बाँड = bond
ब्लाग = blog
4 comments:
वाह सुंदर बन पड़ी है बढ़िया
मजेदार दमदार रचना...
नीरज
Rahul ji,
mujhe lagta hai abhi aapki poem incomplete hai
main padh hi rha tha, ek dam laga ye kya poem khatam ho gayee...
isko poora zaroor keejiyega...
Ti Si Gareat ho sir
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