दिल दिल है कोई शीशा तो नहीं कि चोट लगी और टूट गया
प्यार प्यार है कोई दाग नहीं कि हाथ मला और छूट गया
सपनें सपनें हैं कोई फूल नहीं कि वक़्त ढला और बिखर गए
दोस्त दोस्त हैं कोई स्टेशन तो नहीं कि ट्रेन चली और बिछड़ गए
हम हम हैं कोई किरदार नहीं कि पन्नों में ही दब के रह गए
हम प्रेमी हैं कोई गुनहगार नहीं कि कारावास में ही मर गए
हमें प्यार हुआ और हमने प्यार किया
सिर्फ़ प्यार, प्यार और प्यार किया
माना कि हम शीरीं-फ़रहाद नहीं
पर किया किसी का घर बर्बाद नहीं
सब कुछ किया लेकिन विवाह नहीं
ताकि रिश्ता हो कोई तबाह नहीं
वो पावन ज्योत अब भी जलती है
जिसे मन-मंदिर में तुम जला गए
ये हवाएँ अब भी वो गीत गाती हैं
जिसे जाते वक़्त तुम गुनगुना गए
वो निर्मल नदी अभी भी बहती है
जिसमें प्रेम रस तुम बरसा गए
वो वादी अभी भी महकती है
जहाँ तुम प्रेम की बेल लगा गए
मेरा दिल अब भी धड़कता है
तुम रीत ही कुछ ऐसी चला गए
सिएटल,
22 अगस्त 2008
Friday, August 22, 2008
मेरा दिल अब भी धड़कता है
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:39 AM
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Labels: relationship, valentine
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5 comments:
सरल शब्दों में आपनी खूबसूरत गजलें कही हैं, बधाई स्वीकारें।
sunder
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर ..शुक्रिया ..
छू गई दिल को...
धड़कता रहे दिल ऐसेइच!
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