Tuesday, August 12, 2008

भारत छोड़ो आंदोलन

वतनफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे मन में है
विदेशी नागरिकता का ख़्वाब आज हमारे जन-जन में हैं

डॉक्टर नहीं, इंजीनियर नहीं
वकील नहीं, कलाकार नहीं
ऐसा कोई व्यवसायी नहीं
जो बिकने को तैयार नहीं
बिक गया अमरीका में कोई तो कोई बिक गया लंदन में है

सुबह नहीं, शाम नहीं
दिन नहीं, रात नहीं
ऐसा कोई वक़्त नहीं
जब न होती बात यही
कि सबसे सुखी संतान वही जो पलती विदेशी आंगन में है

हाय करे, हैलो करे
झुक झुक के नमस्कार करे
गौरी चमड़ी, काली कार
देख देख के जयजयकार करे
मृत होते आत्मसम्मान को हम ढक रहे सिक्कों के कफ़न में है

मैं नहीं, आप नहीं
भाई नहीं, बाप नहीं
ऐसा कोई व्यक्ति नहीं
जो करता धन का जाप नहीं
एक एक करके सब के सब खप गए इस ईधन में हैं

पूजा नहीं, पाठ नहीं
किसी का सत्कार नहीं
उंगलियों पे गिन सको
इतने भी संस्कार नहीं
न खुद्दारी है किसी भाई में न मान-मर्यादा किसी बहन में है

गाँव नहीं, शहर नहीं
गली नहीं, बस्ती नहीं
एक भी मुझे मिली नहीं
ऐसी कोई हस्ती कहीं
जो तल्लीन देश के, समाज के, विकास के चिंतन में है

पूरब नहीं, पश्चिम नहीं
उत्तर नहीं, दक्षिण नहीं
ऐसी कोई दिशा नहीं
जहाँ न हो लक्षण यही
कि हर एक शाख पे उल्लू बैठा आज इस उपवन में है

सिएटल,
12 अगस्त 2008

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4 comments:

Anonymous said...

Nice Poem written in Seattle :).

Dollar ke badte rate se, jindagi humare dhan mein hai,
jis din dollar gir jaye, watan humaare tan mein hai.....
magar kuch bhi ho jaye is duniya ka, desh bhakti humaare mann mein hai....

This is the real haalat aaj ke "Bharat Vaasiyon" ki.....stiil, We love OUR Country......

Rama said...

डा. रमा द्विवेदीsaid...


धन का ग्लैमर बहुत फिसलन भरा होता है एक बार फिसले कि फिर सीधे खड़े हो पाना बहुत मुश्किल होता है । कटु सत्य पर इसके दोषी भी हम ही हैं..."भारत से प्रतिभाओं का पलायन इसी कारण हो रहा है और सरकार कुछ नहीं कर रही। इस देश का भगवान ही मालिक है क्योंकि यहां हर कोई अपना दोष दूसरे के सिर पर ड़ालने में माहिर हैं । आपने एक बहुत ही ज्वलन्त समस्या पर कविता लिखी है...साधुवाद...

Dinesh Arya said...

bahut khoob. Etni pasand aaye ke khud bhi bar-2 padhi aur mitron (NRI) ko bhi bheji.
Likhate Raho!
Acha lagata hai!!

Rajiv राजीव said...

गजब की पकड है भाई आपकी पैनी नजर कि, हम तो फिदा (मकबूल वाले नहीं) हो गये हैं.