हुस्न और इश्क़ का असर हो गया
आदमी था काम का सिफ़र हो गया
हँस-हँस के लूटा हर बेब ने मुझे
आप को गिला कि मैं बेबहर हो गया
लिखता हूँ लिखता ही रहूँगा सदा
सुन-सुन के गालियाँ निडर हो गया
ख़ुद की कहता हूँ ख़ुदा की नहीं
जो मार के इन्सां अमर हो गया
नन्हा सलोना सा जीवन था मेरा
बढ़ते बढ़ते दीगर हो गया
फ़ोर्ट वॉर्डेन,
16 अगस्त २००८
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सिफ़र = zero, शून्य
गिला = शिकायत
बेब = babe
बेबहर = बिना बहर का, without meter
दीगर = अन्य, another, दूसरा
Saturday, August 16, 2008
हुस्न और इश्क़ का असर हो गया
Posted by Rahul Upadhyaya at 1:56 PM
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Labels: CrowdPleaser
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2 comments:
bahut sunder,badhai aapko
This one is good Rahul ji.
Bahut khoobsoorat !!
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