Wednesday, May 21, 2008

लांग वीकेंड

तीन दिन की छुट्टियाँ आई थी
और जिसे देखो कहीं जा रहा था
सारा मोहल्ला खाली होता जा रहा था

वैसे भी यहाँ रहता कौन था
मरघट सा यहाँ रहता मौन था

लेकिन
आते-जाते
कम से कम
दिख तो जाते थे
भागते-दौड़ते ही सही
दुआ-सलाम तो कर जाते थे

अब एक अच्छा बहाना था
भई, लांग वीकेंड है
हम तो यहाँ होगे नहीं
वरना थोड़ी देर आपके साथ बैठते
इधर-उधर की थोड़ी गपशप करते

देखा-देखी हम भी चल पड़े
चलो इसी बहाने परिवार से जुड़ेगे
तीन दिन हम सब साथ रहेगे
दिल से दिल की बात कहेगे

सुबह सवेरे
जग जाते थे हम
किसी न किसी लाईन में
लग जाते थे हम
जहाँ भी गए लाईनें ही देखी
आदमी नहीं कहीं कोई देखा

भागते-दौड़ते सब कुछ देखा
बात करने का भी मिला न मौका

लौट के आए
तो कैमरे में कैद चंद तस्वीरें थी
और माथे पर खींच गई नई लकीरें थी

सिएटल,
21 मई 2008

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1 comments:

Anonymous said...

Very Good Rahulji....Kya Sahi baat kahi hay..!!